कुछ अनकही सी , कुछ अनसुनी सी
कुछ अनकही सी, कुछ अनसुनी सी,
यह कहानी है कुछ रूमानी सी...
उम्र थी कुछ नाज़ुक सी,
दिल भी था अरमान भरा.
बस! एक ही झलक ने उनके
वह एहसास था जगा दिया।
दिल को वह भा गए, मन में वह समा गए
इन इंद्रियों में सपने बन, दीप स्वरुप छा गए
उस नादाँ दिल ने भी उनकी ही छबी बसाई
उस पागल मन ने भी उनके ही ख्वाब सजाए
कुछ ही घड़ियों का था मिलना, अंखियो से उनको निहारना
मन में एक लहर थी उभरी, फिर भी जुबां तक बात न आयी
उस नादाँ उम्र में, मन ने था जिसको बसाया,
फिर कोई न उस दिल में घरोंदा कभी कर पाया।
जिस दिन थी उठी डोली, दिल ने था कहर मचाया
क्यों सजाए थे यह सपने, क्यों बुने थे यह ख्वाब ???
दिल को था लाख मनाया - सपने और ख्वाब तो साथ चलेंगे
रह जायेंगे तो बस अरमान ! फक्र था जो खुदपर उनको न भूल पाएंगे ...
फिर क्यों रुला गयी, आज भी वही...
कुछ अनकही सी, कुछ अनसुनी सी, पुरानी ही सही पर कुछ रूमानी सी... कहानी इस दिल में दबे अरमानो की।
Purnima
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